…तो इस कारण से आर.डी. बर्मन का नाम पड़ा था “पंचम”

>> आशा भोंसले ने फिल्मों के लिए गायन का अपना सफर सन 1948 में रविंदर दवे की फ़िल्म 'चुनरिया' से शुरू किया था. और, आज की तारीख में 12,000 से अधिक गीत गाने का रिकॉर्ड केवल उनके ही नाम है. इसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है. >>... Continue Reading →

स्क्रीनप्ले में “कट टू” (Cut To) क्यों लिखा जाता है?

कथा-पटकथा ब्लॉग से जुड़ने वाले अनेक नए-पुराने पाठकों ने यह सवाल पूछा है कि स्क्रीनप्ले में “कट टू” (Cut To) क्यों लिखा जाता है और इसका क्या मतलब है? उन पाठकों को बताना चाहूंगा कि एक पटकथा लेखक जब किसी कहानी को स्क्रीनप्ले यानी पटकथा के प्रारूप में ढालता है, तो वह जिस शब्दावली या... Continue Reading →

‘प्रोटागोनिस्ट’ और ‘एंटागोनिस्ट’ क्या है? बेहतर लेखन के लिए फ़िल्मी शब्दकोश को जानें

जब मैं बनारस हिन्दू यूनिर्वसिटी (बीएचयू) में मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई के दौरान फिल्म स्टडीज में स्पेशलाइजेशन कर रहा था, तो फिल्म की कथा और पटकथा के अलावा दो और पहलुओं ने मुझे बहुत आकर्षित किया, वे थे: ‘फ़िल्मी शब्दावली’ और ‘फिल्म-मेकिंग का तकनीकी पक्ष’। फ़िल्मी शब्दावली को जानें इस ब्लॉग के नए कलेवर में... Continue Reading →

फिल्म की कहानी को वनलाइनर के रूप में कैसे लिखें? जानिए पटकथा के लिए वनलाइनर लिखने के फायदे…!

देर आए, दुरुस्त आए..., यह कहावत बहुत मामलों में सही हो सकता है, लेकिन एक ब्लॉगर के लिए यह बहुत घातक है. और, मैं इसका भुक्तभोगी हूं. सन 2014 के बाद मैंने कोई भी पोस्ट इस ब्लॉग पर नहीं डाला है. इस वजह से इस ब्लॉग के कई नियमित विजिटर्स और पाठक न केवल निराश... Continue Reading →

कुछ फिल्मी सवाल और उनके जवाब

मेरे फेसबुक फ्रेंड दीपक मणि त्रिपाठी ने आज मुझसे फिल्मों से जुड़ा कुछ ख़ास सवाल पूछा। मेरे साथ-साथ उनके पोस्ट में बीएचयू के मेरे जूनियर विनीत कुमार सिंह और मेरे एक अन्य फेसबुक मित्र मानस उर्मिला त्रिपाठी भी टैग्ड थे। दीपक जी के सवाल हम तीनों के लिए थे और उनकी अपेक्षा थी कि हम तीनों... Continue Reading →

बॉलीवुड की खोज : वनलाईनर

पिछले दो आलेखों में हमलोगों ने एक कथा का पटकथा में रुपांतरण के सबसे पहले पड़ाव 'प्रिमाईस' की विस्तार से चर्चा की। इन आलेखों में हमने यह भी जानने और समझने की कोशिश की कि यह क्यों  जरुरी है। एकबार फिर सुधी पाठकों को उनकी जबरदस्त प्रतिक्रिया, आलोचना और पसंद करने के लिए तहेदिल से... Continue Reading →

पहली फ़िल्म है, शानदार है, मनोरंजक है!

फेसबुक, फ्रेंडशिप और फ़िल्म तक़रीबन दो हफ्ते पहले की बात है, मेरे फेसबुक पेज पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आया। रिक्वेस्ट चाहे किसी का हो, मैं स्वीकार जरूर करता हूं। हां, एकबार प्रोफाइल अवश्य देखता हूं। फ़िल्म, साहित्य, मीडिया और अन्य रचनात्मक कार्यों से जुड़े लोगों के फ्रेंड रिक्वेस्ट तो मैं बिना सोचे-समझे एक्सेप्ट करता हूं। यह... Continue Reading →

पटकथा कैसे लिखें – भाग 2

एक पटकथा के कथानक को समस्या, संघर्ष और समाधान में बांटना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह कथानक को उसकी थीम और दार्शनिक पृष्टभूमि से जोड़े रखता है। कथा और पटकथा के विस्तार के समय भटकाव की गुंजाइश लगभग नहीं के बराबर होती है।

पटकथा कैसे लिखें – भाग 1

कथा बनाम पटकथा पिछले दो आलेखों के प्रकाशित होने के बाद मेरे पास कई पाठकों ने फेसबुक, व्हाट्सअप, गूगल चैट, फोन और इस ब्लॉग के जरिये संपर्क किया और कहा कि उनके पास फलां-फलां कहानी (कथा) है और उन कहानियों पर बड़ी धांसू फिल्में बन सकती है। बड़ी शिद्दत से उन प्रिय पाठकों ने पूछा... Continue Reading →

फिल्म ‘शोले’ की कथा-पटकथा की विवेचना – भाग 2

फिल्म ‘शोले’ की कथा-पटकथा की विवेचना – भाग 2 पिछले आलेख में मैंने लिखा है कि हम आगे के आलेखों में फिल्म ’शोले’ के कथानक और घटनाओं से उपजी ‘समस्या’ और ‘समाधान’ को चिह्नित करेंगे। इस सिलसिले में मेरी मंशा थी कि आप सभी को शोले के कथानक की कुछ और स्क्रिप्ट पढ़वाऊं। लेकिन एनडीटीवी... Continue Reading →

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